Friday 10 June 2011

मैं तुझे छूना चाहती थी.......$oni....


मैं चलते-चलते यह  किस मोड़ तक चली  आई
कि पीछे मुड़कर देखूं तो
तेरी परछाईं भी बुझते  हुए
चरागों -सी नज़र आती है |
हाथ ग़र बढाऊँ तो
तुझे छू भी नहीं पाती हूँ
तुझ तक लौटना चाहूँ तो
कोई राह मुझे मिलती ही नहीं..
कि इन लम्बी काली राहों से निकलते  हैं
कई और सिरे,
जिन पर चलकर मैं इस भीड़ में खो सी जाती हूँ 
कई बार तो साँसे हलक में फंसकर दर्द कि हद तक 
कराहती हुई रह जाती है |
कुछ  उलझे हुए रास्तों की  दूरी मुझे डराती  है,
मेरे पैरों के नीचे से मेरी ज़मीन  सरकती जाती है.........
उनमें से एक  सिरा है सीधा -सा सपाट -सा ....
मगर उस पर चलकर तुझ तक आऊं ?
क़ि ये भी मेरी फ़ितरत को गवारा नहीं...
तो हर शाम 
उस पुराने किले की  मीनार को निहारा करती हूँ 
जो बहुत ऊँचा है और फ़लक तक फैला रहता है
बस......................
मेरी सोच वहीँ जाकर अटक सी जाती है  
किसी पतंग क़ि मानिंद..
बेजान बिना मकसद और
तन्हा -तन्हा  अपने आप से बातें करती हुई,
जहाँ से कोई नयी राह निकलती  ही नहीं |

बिखरी हुई ज़ुल्फ़ को .........$oni..

बिखरी हुई ज़ुल्फ़ को
करीने से सजाकर मैंने  
महकती सांस मैं 
कुछ और इत्र  घोला है ,
लबों पर छिड़की है
एक ताज़ा  सुर्ख़ लाल हंसी
और पेशानी से बासी
हदों  को खोला है |
लो फिर एक और दिन
पहना है मेरे  चेहरे ने ,
कि एक और  दिन
गुज़रेगा हकीक़त बनकर |
आईने से खुश होने का 
वादा करके मेरे ही अक्श ने
मुझसे ही झूठ बोला है |
अभी निकालेंगे मेरे पाँव
घर से मंजिल को ,
शाम सिमटेगी तो फिर
थक कर वापस  लौटेंगे ,
सफेद चादरों के
बुत बने से बिस्तर पर ,
ज़िस्म एक लाश क़ी सूरत मैं 
बिखर जायेगा  .....
रगों में दफ़्न सन्नाटों से
राज़ खोलेगा 
और तन्हाई में मुंह डाले 
खूब रो लेगा | 
गिर के उठेंगे कई ज्वार
तन के दरिया  में ,
किसी ठहराव के मुहाने से
लग के रो लेंगे |
लुढ़क जाते हैं कई
दिन इसी तरह थक कर ,
कदीम रातों के तकिये का
सहारा लेकर |
बस एक उम्र है जो
मुसलसल सी चला करती है 
साँसों को सीने में दबाये हरदम |
लो फिर एक और दिन
पहना था मेरे चेहरे ने,
कि एक और दिन गुज़ारा 
था हकीक़त बनकर .........



(कदीम =पुराने ,मुसलसल =लगातार)

Friday 3 June 2011

हमने मोहब्बत की थी

वादा हमने किया था निभाने के लिए !
एक दिल दिया था एक दिल पाने के लिए !!
उन्होंने मोहब्बत सिखा दी और कहा की...!
हमने मोहब्बत की थी किसी और को जलाने के लिए !!

तेरी याद में

बेताब सा रहते हैं तेरी याद में अक्सर !
रात भर नहीं सोते हैं तेरी याद में अक्सर !!
जिस्म में दर्द का बहाना बना के.....!
हम टूट के रोते हैं तेरी याद में अक्सर !!

चुप -चाप

भरी महफिल में तन्हा मुझे रहना सिखा दिया !
तेरे प्यार ने दुनिया को झूठा कहना सिखा दिया !
किसी दर्द या ख़ुशी का एहसास नहीं है अब तो !
सब कुछ ज़िन्दगी ने चुप -चाप सहना सिखा दिया !

हाल-ऐ-दिल

कुछ लिख नहीं पाते, कुछ सुना नहीं पाते!
हाल-ऐ-दिल जुबान पर ला नहीं पाते!
वो उतर गए हैं दिल की गहराइयों में!
वो समझ नहीं पाते और हम समझा नहीं पाते!

नाम तेरा,


अपने जज्बात को,
नाहक ही सजा देती हूँ...
होते ही शाम,
चरागों को बुझा देती हूँ...
जब राहत का,
मिलता ना बहाना कोई...
लिखती हूँ हथेली पे नाम तेरा,
लिख के मिटा देती हूँ......................

    Wednesday 1 June 2011

    अब तक पा न सकी प्रीतम को,

    जनम जनम से बिछुड़ी ,
    अब तक पा न सकी प्रीतम को,
    सीमाओं में बाँध न पाई..
    अपने चंचल मन को

    देख धूल का ढेर बावला,
    मचल मचल मन खेला,
    भटक गया ,घर लौट न पाया
    देख जगत का मेला..

    बैठ कहीं एकांत शांत मन
    मुदू नयन झरोखे
    तभी वहां रंगीन खिलौने
    दे जाते हैं धोखे

    प्यास कंठ में अकुलाई तो
    भटकाया मृग-जल में
    सांस सांस यूँ छली गयी
    छलनाओं की छल-छल में

    मैं तो अब तक पहुँच न पाई
    मीत तुम्ही आ जाते...
    साथ तुम्हारे असत जगत के
    भरम न यूँ भरमाते...

    Monday 30 May 2011

    खामोश नारी ....... $oni..


    सदियों से करते आए हो

    खामोश तुम नारी को

    आज भी यही चाहत है

    खामोशी के सन्नाटे में

    बस तुम्हारी ही आवाज़

    गुंजित  रहे ..

    सुकून मिलता है तुम्हें

    दंभ  अपना दिखा कर

    तुम्हारी चाहत के अनुरूप ही

    सुर  हमारा बदलता  रहे

    ख्वाहिशों को

    अंजाम देने के लिए

    कभी मनुहार करते हो

    पर उसमें भी तो

    आदेश का स्वर भरते हो

    दिखाते तो हो जैसे

    ख़ुशी के इन्द्रधनुष

    पर हर धनुष पर

    एक बाण भी रखते हो

    आहत हो जाती हैं

    भावनाएं कोमल मन की

    बिखर जाती हैं जैसे

    पत्ती - पत्ती किसी गुल की

    तुम्हारे अहम् तले पंखुरियां

    रौंद  दी  जाती हैं

    और नारी फिर भी

    उफ़  तक नहीं कर पाती है

    जूझती रहती है वो

    अपने अंतर्मन से

    सिलती रहती है ज़ख्म

    सहनशीलता के फ़न  से 

    उसके इस फ़न  को तुम

    मान लेते हो उसकी  कमजोरी

    और समझते रहते हो कि

    ये है उसकी मजबूरी

    काश -

    कभी उसके मन की

    पहली पर्त ही खोल पाते

    तो नारी के मन की तुम

    थाह  ही पा जाते......

    पत्थर हो गयी हूँ ......$oni.




    ख़्वाबों  की दुनियाँ में 
    आज 
    एक तूफ़ान आया था 
    खुली आँखों से 
    एक भयानक 
    ख्वाब आया था 
    मन  था मेरा 
    ऐसी नाव पर सवार 
    जिसमें न नाविक था 
    और न थी  पतवार 
    फंस गयी थी  नाव 
    मेरी बीच मंझधार 
    मैं चिल्ला रही थी 
    बार - बार .
    बचाओ  मुझे बचाओ ...

    पर नहीं हुआ किसी को 
    मेरी बात पर यकीन 
    और डूब गयी 
    नाव मेरी 
    ऐसी नदी में 
    जो थी जलहीन ...

    बिना  पानी के आज 
    मैं खो गयी हूँ 
    पत्थर तो नहीं थी 
    पर आज हो गयी हूँ ...




    Saturday 28 May 2011

    क्यूँ नाराज हो जाते हो तुम मुझसे ? $oni.

    कितना मुश्किल है तुम्हे समझ पाना 


    कभी मुस्कराते हो तो कभी नाराज हो जाते हो


    पल प्रतिपल बदलती है तुम्हारी सूरत 


    कभी कल तो कभी आज हो जाते हो 


    मेरी सांसों में खनकती है तुम्हारी खुशबू 


    इनमें ढलकर सांसों के साज हो जाते हो 


    कैसे समझे क्या खता हुई हमसे 


    तुम्ही बता दो तुम नाराज क्यों हो जाते हो.....  

    Tuesday 24 May 2011

    रिश्तों की मौत....$oni.

    जन्म लेने से पहले ...
    साँसों के तन से ,
    जुड़ने से पहले ...
    न जाने कितने रिश्ते
    खुद बा  खुद जुड़ जाते हैं
    और बन्ध जाते हैं
    कितने बंधन
    इन अनजान रिश्तों से ,
    और फिर विश्वास की डोर से
    बंधे यह रिश्ते
    लम्हा -लम्हा
    पनपने लगते हैं
    होता है फिर न जाने ..
    अचानक से कुछ ऐसा ,
    कि अपने ही कहे जाने वाले
    अजनबी से हो जाते हैं
    रस्मी बातें ...
    रस्मी मुलाकातें ...
    एक "लाइफ सपोर्ट सिस्टम "
    से बन जाते हैं
    बोझ बने यह रिश्ते
    आखिर कब तक यूँ ही
    निभाते जायेंगे
    सोचती हूँ कई बार
    आखिर क्यों नहीं
    इन बोझिल रिश्तों को
    हम खत्म हो जाने देते
    आखिर क्यों नहीं ....
    हम को अपनी "स्व मौत" मर जाने देते ??

    Saturday 16 April 2011

    कितना बेदर्द वो इंसान था ....$oni


    हर सितम तेरा सहती  हूँ देखा नहीं
    मै भी इन्सान हूँ तूने सोचा नहीं

    तेरा सौदाई हूँ तेरा सौदा नहीं
    अपने मासुका  को तूने ख़रीदा नहीं

    जान दे दी मोहब्बत में जिस के लिये
    मेरी मय्यत में वो शख़्स आया नहीं

    मेरा टूटा हुआ दिल वो समझेगा क्या
    शीशा टूटा हुआ जिसने देखा नहीं

    कितना बेदर्द  वो इंसान था
    मेरी बरबादियों में जो रोया नहीं

    Friday 15 April 2011

    आज आँखें वीरान हैं........$oni


    कुछ भी पुराना नहीं
    कुछ भी अनजाना नहीं
    कुछ भी अनकहा नहीं
    कुछ भी अनसुना नहीं
    फिर भी क्यूँ हैं हम अजनबी से
    क्यूँ ओढ़ ली है हमने
    ख़ामोशी की चादरें
    क्यूँ हमने अपनी-अपनी सरहदें बना ली हैं

    प्यार की बातें भी तो
    हमने ही की थीं
    एहसास की बातें
    हमने ही की थीं
    तो फिर क्यूँ
    -
    आज आँखें वीरान हैं
    क्यूँ दिलों की धरती
    बाँझ हुई जाती है
    मौन तोड़ो
    कुछ कह भी दो !

    पत्ते सी कांपती लड़की......... $oni


    एक कमरा-
    मेरी ज़िन्दगी का गवाह !
    मेरी अभिव्यक्ति से कही ज्यादा
    दहशतज़दा !
    पुरवा के झोंके में भी
    किसी अकेले पत्ते को
    यूँ कांपते नहीं देखा होगा
    जिस तरह से एक मासूम लड़की
    मेरे अन्दर थर्राती रही ...
    भूखे रहकर भी
    मैंने लोरी सुनाई थी
    दुआओं के धागे से
    तुम्हारे सम्पूर्ण अस्तित्व को बाँधा था
    तुम जो हो
    वह मेरी वह जिजीविषा है
    जिसने तुम्हें देवदार बनाने के लिए
    हर चाल की नीति को अपनाया
    ....
    आज भी वह लड़की
    उस पत्ते की ही मानिंद है
    जो कांपता है शाखाओं से टूटने के अंदेशे में
    पर अपना अस्तित्व नहीं खोता
    किसी किताब के पृष्ठ में
    एक याद बन रहने की कल्पना में
    दुआओं के बोल बोलता है

    इस पत्ते की लकीरों को ध्यान से देखो
    इन लकीरों में तुम्हारा सम्पूर्ण वजूद है
    इन लकीरों में ही तुम्हारे आगत के मंत्र हैं
    ये लकीरें तुम्हारे साथ थीं
    हैं और रहेंगी भी....
    तुम्हारे आकाश की मजबूत जड़ों का आधार
    पत्ते सी कांपती वही लड़की आज भी है !!!