फिर अकेली हो गई......
में तेरे जाने के बाद
सुबह से साँझ तक
हवाओं में ख़ुश्बू की मानिंद
ढूंढती फिरती रही.........
खोजती ही रह गई,
हाथों की लकीरों में आज....
गुज़रे वक़त से चुराकर
लम्हें कुछ बीते हुए
यादें आती रही.........
चंदा से तारों को,
रात से अंधियारों को
मांग कर उधार,
साँझ मैनें यूँ बिताई
बस,
तेरी यादों के साथ........
प्रीति के सपने सजाकर
जूही के फूलों - सा
मन महकता रहा......
प्रीति मैनें यूँ निभाई
स्नेह सजल आँखों में आज...............