Saturday 16 April 2011

कितना बेदर्द वो इंसान था ....$oni


हर सितम तेरा सहती  हूँ देखा नहीं
मै भी इन्सान हूँ तूने सोचा नहीं

तेरा सौदाई हूँ तेरा सौदा नहीं
अपने मासुका  को तूने ख़रीदा नहीं

जान दे दी मोहब्बत में जिस के लिये
मेरी मय्यत में वो शख़्स आया नहीं

मेरा टूटा हुआ दिल वो समझेगा क्या
शीशा टूटा हुआ जिसने देखा नहीं

कितना बेदर्द  वो इंसान था
मेरी बरबादियों में जो रोया नहीं

Friday 15 April 2011

आज आँखें वीरान हैं........$oni


कुछ भी पुराना नहीं
कुछ भी अनजाना नहीं
कुछ भी अनकहा नहीं
कुछ भी अनसुना नहीं
फिर भी क्यूँ हैं हम अजनबी से
क्यूँ ओढ़ ली है हमने
ख़ामोशी की चादरें
क्यूँ हमने अपनी-अपनी सरहदें बना ली हैं

प्यार की बातें भी तो
हमने ही की थीं
एहसास की बातें
हमने ही की थीं
तो फिर क्यूँ
-
आज आँखें वीरान हैं
क्यूँ दिलों की धरती
बाँझ हुई जाती है
मौन तोड़ो
कुछ कह भी दो !

पत्ते सी कांपती लड़की......... $oni


एक कमरा-
मेरी ज़िन्दगी का गवाह !
मेरी अभिव्यक्ति से कही ज्यादा
दहशतज़दा !
पुरवा के झोंके में भी
किसी अकेले पत्ते को
यूँ कांपते नहीं देखा होगा
जिस तरह से एक मासूम लड़की
मेरे अन्दर थर्राती रही ...
भूखे रहकर भी
मैंने लोरी सुनाई थी
दुआओं के धागे से
तुम्हारे सम्पूर्ण अस्तित्व को बाँधा था
तुम जो हो
वह मेरी वह जिजीविषा है
जिसने तुम्हें देवदार बनाने के लिए
हर चाल की नीति को अपनाया
....
आज भी वह लड़की
उस पत्ते की ही मानिंद है
जो कांपता है शाखाओं से टूटने के अंदेशे में
पर अपना अस्तित्व नहीं खोता
किसी किताब के पृष्ठ में
एक याद बन रहने की कल्पना में
दुआओं के बोल बोलता है

इस पत्ते की लकीरों को ध्यान से देखो
इन लकीरों में तुम्हारा सम्पूर्ण वजूद है
इन लकीरों में ही तुम्हारे आगत के मंत्र हैं
ये लकीरें तुम्हारे साथ थीं
हैं और रहेंगी भी....
तुम्हारे आकाश की मजबूत जड़ों का आधार
पत्ते सी कांपती वही लड़की आज भी है !!!