एक कमरा-
मेरी ज़िन्दगी का गवाह !
मेरी अभिव्यक्ति से कही ज्यादा
दहशतज़दा !
पुरवा के झोंके में भी
किसी अकेले पत्ते को
यूँ कांपते नहीं देखा होगा
जिस तरह से एक मासूम लड़की
मेरे अन्दर थर्राती रही ...
भूखे रहकर भी
मैंने लोरी सुनाई थी
दुआओं के धागे से
तुम्हारे सम्पूर्ण अस्तित्व को बाँधा था
तुम जो हो
वह मेरी वह जिजीविषा है
जिसने तुम्हें देवदार बनाने के लिए
हर चाल की नीति को अपनाया
....
आज भी वह लड़की
उस पत्ते की ही मानिंद है
जो कांपता है शाखाओं से टूटने के अंदेशे में
पर अपना अस्तित्व नहीं खोता
किसी किताब के पृष्ठ में
एक याद बन रहने की कल्पना में
दुआओं के बोल बोलता है
इस पत्ते की लकीरों को ध्यान से देखो
इन लकीरों में तुम्हारा सम्पूर्ण वजूद है
इन लकीरों में ही तुम्हारे आगत के मंत्र हैं
ये लकीरें तुम्हारे साथ थीं
हैं और रहेंगी भी....
तुम्हारे आकाश की मजबूत जड़ों का आधार
पत्ते सी कांपती वही लड़की आज भी है !!!