Monday 30 May 2011

खामोश नारी ....... $oni..


सदियों से करते आए हो

खामोश तुम नारी को

आज भी यही चाहत है

खामोशी के सन्नाटे में

बस तुम्हारी ही आवाज़

गुंजित  रहे ..

सुकून मिलता है तुम्हें

दंभ  अपना दिखा कर

तुम्हारी चाहत के अनुरूप ही

सुर  हमारा बदलता  रहे

ख्वाहिशों को

अंजाम देने के लिए

कभी मनुहार करते हो

पर उसमें भी तो

आदेश का स्वर भरते हो

दिखाते तो हो जैसे

ख़ुशी के इन्द्रधनुष

पर हर धनुष पर

एक बाण भी रखते हो

आहत हो जाती हैं

भावनाएं कोमल मन की

बिखर जाती हैं जैसे

पत्ती - पत्ती किसी गुल की

तुम्हारे अहम् तले पंखुरियां

रौंद  दी  जाती हैं

और नारी फिर भी

उफ़  तक नहीं कर पाती है

जूझती रहती है वो

अपने अंतर्मन से

सिलती रहती है ज़ख्म

सहनशीलता के फ़न  से 

उसके इस फ़न  को तुम

मान लेते हो उसकी  कमजोरी

और समझते रहते हो कि

ये है उसकी मजबूरी

काश -

कभी उसके मन की

पहली पर्त ही खोल पाते

तो नारी के मन की तुम

थाह  ही पा जाते......

पत्थर हो गयी हूँ ......$oni.




ख़्वाबों  की दुनियाँ में 
आज 
एक तूफ़ान आया था 
खुली आँखों से 
एक भयानक 
ख्वाब आया था 
मन  था मेरा 
ऐसी नाव पर सवार 
जिसमें न नाविक था 
और न थी  पतवार 
फंस गयी थी  नाव 
मेरी बीच मंझधार 
मैं चिल्ला रही थी 
बार - बार .
बचाओ  मुझे बचाओ ...

पर नहीं हुआ किसी को 
मेरी बात पर यकीन 
और डूब गयी 
नाव मेरी 
ऐसी नदी में 
जो थी जलहीन ...

बिना  पानी के आज 
मैं खो गयी हूँ 
पत्थर तो नहीं थी 
पर आज हो गयी हूँ ...




Saturday 28 May 2011

क्यूँ नाराज हो जाते हो तुम मुझसे ? $oni.

कितना मुश्किल है तुम्हे समझ पाना 


कभी मुस्कराते हो तो कभी नाराज हो जाते हो


पल प्रतिपल बदलती है तुम्हारी सूरत 


कभी कल तो कभी आज हो जाते हो 


मेरी सांसों में खनकती है तुम्हारी खुशबू 


इनमें ढलकर सांसों के साज हो जाते हो 


कैसे समझे क्या खता हुई हमसे 


तुम्ही बता दो तुम नाराज क्यों हो जाते हो.....  

Tuesday 24 May 2011

रिश्तों की मौत....$oni.

जन्म लेने से पहले ...
साँसों के तन से ,
जुड़ने से पहले ...
न जाने कितने रिश्ते
खुद बा  खुद जुड़ जाते हैं
और बन्ध जाते हैं
कितने बंधन
इन अनजान रिश्तों से ,
और फिर विश्वास की डोर से
बंधे यह रिश्ते
लम्हा -लम्हा
पनपने लगते हैं
होता है फिर न जाने ..
अचानक से कुछ ऐसा ,
कि अपने ही कहे जाने वाले
अजनबी से हो जाते हैं
रस्मी बातें ...
रस्मी मुलाकातें ...
एक "लाइफ सपोर्ट सिस्टम "
से बन जाते हैं
बोझ बने यह रिश्ते
आखिर कब तक यूँ ही
निभाते जायेंगे
सोचती हूँ कई बार
आखिर क्यों नहीं
इन बोझिल रिश्तों को
हम खत्म हो जाने देते
आखिर क्यों नहीं ....
हम को अपनी "स्व मौत" मर जाने देते ??